भैरव जी की यह साधना नवरात्रि के 9 दिन में ही की जाती है भैरव जी की मूर्ति के सामने सरसो के तेल का अखंड दीपक जलाकर 9 दिनों तक इस मंत्र का जाप किया जाता है ! जप समय में गूगल जलता रहना चाहिए ! प्रतिदिन इस मंत्र की 11 माला जाप करने से भैरव जी की सिद्धि प्राप्त होती है नवरात्रि के नवे दिन भैरव जी को बाकला और तामसिक भोग देना होता है और भैरव जी की सिद्धि प्राप्त होने पर भैरव जी की कृपा से सभी कार्य सम्पनन होते हैं
मंत्र -
आओ भैरव नकलग श्याम , सारो महारा नर धन का काम , दुःख संकट ने दुरो टाल , XXXXXX , छटटे महीने पाछो नाल , सदा राज की XX , भैरू ने पूछे चारो देश , तू है काला XX नीर , जड़े मेल्या 52 वीर , सुन्न में आवे सुन्न में जावे , गाज घोर भैरू आव , XXXX वचन खोलो , नहं थांका चरणा का मोल , XXXX, दे दर्शन तू भैरू मुंडे बोल , मोर्चा मोर्च में जला देवे आग , रहैं बार सूरज बार मे पढू थाको भैरू का पाठ , ज्यांके करजये XXXXXX
यह मंत्र आपको किसी किताब , ग्रंथ में नही मिलेगा ! यह मंत्र सिद्ध महापुरुषों की कृपा से प्रापत मंत्र है ! किसी मंत्र का दुरूपयोग न हो इसलिए मंत्र को हम यहाँ पूर्ण नही लिखते !
एक बीज मंत्र, मंत्र का बीज होता है । यह बीज मंत्र के विज्ञान को तेजी से फैलाता है । किसी मंत्र की शक्ति उसके बीज में होती है मंत्र शास्त्र में बीज मंत्रों का विशेष स्थान है। मंत्रों में भी इन्हें शिरोमणि माना जाता है क्योंकि जिस प्रकार बीज से पौधों और वृक्षों की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार बीज मंत्रों के जप से भक्तों को दैवीय ऊर्जा मिलती है। ऐसा नहीं है कि हर देवी-देवता के लिए एक ही बीज मंत्र का उल्लेख शास्त्रों में किया गया है। बल्कि अलग-अलग देवी-देवता के लिए अलग बीज मंत्र हैं।
मंत्र का जप केवल तभी प्रभावशाली होता है जब योग्य बीज चुना जाए । बीज, मंत्र के देवता की शक्ति को जागृत करता है । बीज मंत्र पूरे मंत्र का एक छोटा रूप होता है जैसे की एक बीज बोने से पेड़ निकलता है उसी प्रकार बीज मंत्र का जाप करने से हर प्रकार की समस्या का समाधान हो जाता हैं. अलग- अलग भगवान का बीज मंत्र जपने से इंसान में ऊर्जा का प्रवाह होता हैं और आप भगवान की छत्र-छाया में रहते हैं. चमत्कारी और प्रभावशाली बीज मंत्रों का जाप करने से दसों-दिशाओं एवं आकाश-पाताल में जल, अग्नि व हर प्रकार की समस्या से निजात पाया जा सकता हैं.
ॐ कार मंत्र जैसे दूसरे मंत्र और हैं उनको बोलते हैं बीज मंत्र , बीज मंत्र का अर्थ खोजो तो समझ में नही आएगा लेकिन अंदर की शक्तियों को विकसित कर देते हैं सब बीज मंत्रो का अपना-अपना प्रभाव होता है !
कुछ बीज मंत्र - ॐ, क्रीं, श्रीं, ह्रौं, ह्रीं, ऐं, गं, फ्रौं, दं, भ्रं, धूं, हलीं, त्रीं,क्ष्रौं, धं,हं,रां, यं, क्षं, तं.
“ऐं”सरस्वती बीज । यह मां सरस्वती का बीज मंत्र है, इसे वाग् बीज भी कहते हैं। जब बौद्धिक कार्यों में सफलता की कामना हो, तो यह मंत्र उपयोगी होता है। जब विद्या, ज्ञान व वाक् सिद्धि की कामना हो, तो श्वेत आसान पर पूर्वाभिमुख बैठकर स्फटिक की माला से नित्य इस बीज मंत्र का एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“ह्रीं”भुवनेश्वरी बीज । यह मां भुवनेश्वरी का बीज मंत्र है। इसे माया बीज कहते हैं। जब शक्ति, सुरक्षा, पराक्रम, लक्ष्मी व देवी कृपा की प्राप्ति हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“क्लीं”काम बीज । यह कामदेव, कृष्ण व काली इन तीनों का बीज मंत्र है। जब सर्व कार्य सिद्धि व सौंदर्य प्राप्ति की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“श्रीं”लक्ष्मी बीज । यह मां लक्ष्मी का बीज मंत्र है। जब धन, संपत्ति, सुख, समृद्धि व ऐश्वर्य की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पश्चिम मुख होकर कमलगट्टे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
"ह्रौं"शिव बीज । यह भगवान शिव का बीज मंत्र है। अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग नाश, चहुमुखी विकास व मोक्ष की कामना के लिए श्वेत आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
"गं"गणेश बीज । यह गणपति का बीज मंत्र है। विघ्नों को दूर करने तथा धन-संपदा की प्राप्ति के लिए पीले रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
"श्रौं"नृसिंह बीज । यह भगवान नृसिंह का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, सर्व रक्षा बल, पराक्रम व आत्मविश्वास की वृद्धि के लिए लाल रंग के आसन पर दक्षिणाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या मूंगे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“क्रीं”काली बीज । यह काली का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, पराक्रम, सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ आदि कामनाओं की पूर्ति के लिए लाल रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“दं”विष्णु बीज । यह भगवान विष्णु का बीज मंत्र है। धन, संपत्ति, सुरक्षा, दांपत्य सुख, मोक्ष व विजय की कामना हेतु पीले रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर तुलसी की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
चन्द्रग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से किये गये सत्कर्मों का कई गुना ज्यादा फल होता है । ग्रहण काल में जप करने से मंत्र जाग्रत हो जाता है । ग्रहण के समय किसी भी मूर्ति अथवा यन्त्र को हाथ ना लगाएं। इस दौरान पूजा करते हुए दीपक अथवा धुप ना जलाएं। इस दौरान भगवान को भोग भी नहीं लगाया जाता है। आपको केवल माला से मंत्र जप करना है। ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान करने के बाद ही अपनी नियमित पूजा करें। यन्त्र को स्नान कराये एवं दीपक आदि जलाकर भोग लगाएं।
चंद्र ग्रहण हो तो एक माला इस मंत्र की करें :-
मंत्र –ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:
चन्द्र ग्रहण में गुरु साधना करनी चाहिये.अप्सरा साधना, लक्ष्मी साधना के लिये यह सबसे श्रेष्ठ मुहुर्त होता है.सम्मोहन/वशीकरण साधना के लिये यह उपयुक्त समय होता है.
ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुशा या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते । पके हुआ अन्न जो बच जाय उसका त्याग करके उसे गाय, कुत्ते आदि को डाल देना चाहिए तथा स्वयं के लिए ताजा भोजन बनाना चाहिए । ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग कर सकते हैं वो भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही बाकी ग्रहण के शुरूआत से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए
ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल (वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए । स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं । ग्रहण पूरा होने पर उसका शुद्ध बिम्ब देखकर एवं कुछ दान करने के बाद ही भोजन करना चाहिए ।।
ग्रहण काल आरम्भ होने से समाप्ति के मध्य की अवधि में मंत्र ग्रहण, मंत्रदीक्षा, जप, उपासना, पाठ, हवन, मानसिक जाप, चिन्तन करना कल्याणकारी होता है.सूर्य ग्रहण अवधि में देव मूर्तियों को स्पर्श नहीं किया जाता है. सूतक समय के बाद स्वयं भी स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें, तथा देवमूर्तियोम को स्नान करा कर, गंगाजल छिडक कर, नवीन वस्त्र पहनाकर, देवों का श्रंगार करना चाहिए.देव प्रतिमाओं के अलावा तुलसी वृ्क्ष, शमी वृ्क्ष को स्पर्श नहीं किया जाता है.ग्रहण के बाद इन सभी पर भी गंगाजल छिडक इन्हें शुद्ध किया जाता है.ग्रहण काल में अपने इष्ट देव, मंत्र, गुरु मंत्र, गायत्री मंत्र आदि का जप दीपक जला कर करना चाहिए.मंत्रों की सिद्धि के लिये यह समय सर्वथा शुभ होता है. तथा इसके विपरीत इस समयाधि के मध्य समय में भोजन ग्रहण करना, भोजन पकाना, शयन, मल-मूत्र त्याग, रतिक्रियाएं व सजने संवरने से संबन्धित कार्य नहीं करने चाहिए.
ग्रहण काल से जुडी एक मान्यता के अनुसार इस अवधि में सब्जी काटना, सीना-पिरोना आदि से बचना चाहिए, नहीं तो जन्म लेने वाले बालक में शारीरिक दोष होने की संभावना रहती है. इसके अलावा उन्हें ग्रहण समय में घर से बाहर भी नहीं निकलना चाहिए. तथा ग्रहण दर्शन तो कदापि नहीं करना चाहिए.
ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए । ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए । ग्रहण के स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडे जल में भी दूसरे के हाथ से निकाले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ, निकाले हुए की अपेक्षा जमीन में भरा हुआ, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, (साधारण) बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है ।।
ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान आदि करना चाहिए इससे अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है । ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल आदि नहीं तोड़ने चाहिए । बाल तथा वस्त्रादि भी नहीं निचोड़ने चाहिए एवं दंतधावन भी नहीं करना चाहिए । ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्रादि का त्याग, मैथुन और भोजन ये सभी कार्य वर्जित हैं ।ग्रहण के समय कोई भी शुभ व नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए ।
ग्रहण काल में सूतक के नियम लगने के कारण ग्रहण के बाद ही शुभ कर्म जेसे पूजा, अनुष्ठान, दान आदि कार्य करने लाभदायक होते हैं। सूतक काल की अवधि में मंत्र , जप, तप इत्यादी सिद्धि के कार्य किये जाते हैं। परंतु आजके भौतिकता वादी वैज्ञानिक युग में आधुनिकता कि दौड में अंधि दौड लगाने वाले व्यक्ति ग्रहण काल के प्रभाव को नकार देते हैं।ग्रहण काल मे मंत्र जाप करने से निच्शित सिद्धियां प्राप्त होती है क्युके ग्रहण काल मे किये जाने वाले मंत्र जाप का फल कम से कम 1000 गुणा ज्यादा प्राप्त होता है। कोइ भी शाबर मंत्र जगाना हो या सिद्ध् करना हो तो ग्रहण काल से अधिक शुभ सिद्धिप्रद समय दुसरा कोइ नही होता है। जो साधक ग्रहण काल मे साधना नही करता है उसे स्वयं को साधक नही मानना चाहिये।हम जितने भी मंत्रो का जाप एक वर्ष मे करते है और उनमे सफलता प्राप्त करते है,उन मंत्रो का जाप ग्रहण काल मे किया जाये तो वह मंत्र कइ वर्षों तक चैतन्य रहेते है।
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